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न वो छत है, न वो आँगन, न उस मिट्टी की खुशबू है

हमेशा के लिए मैं इस नई नगरी में आया हूँ
मैं घर की रोटियाँ और कुछ दुआएं साथ लाया हूँ

न वो छत है, न वो आँगन, न उस मिट्टी की खुशबू है
मैं कुछ पाने की चाहत में, बहुत कुछ छोड़ आया हूँ

मैं इस बस्ती में सालों से बसा हूँ फिर भी जाने क्यूँ
न ये बस्ती हुई मेरी, यहाँ अब तक पराया हूँ

यहाँ मैंने बहुत शोहरत बहुत इज्जत कमाई है
मगर वो गाँव की नदियां वो गलियाँ छोड़ आया हूँ

मुझे वापिस बुलाने की सदाएं आती हैं लेकिन
यहाँ मैं खुद नहीं आया, मैं किस्मत का बुलाया हूँ

मैं भी कब तक नकाबों के सहारे ज़िंदगी जीता
मैं सारे झूठे रिश्ते झूठे नाते तोड़ आया हूँ

वो जिनके साथ मैं हर रोज खेला करता था क्रिकेट
गली के दोस्तों को मैं अकेला छोड़ आया हूँ

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