ए बुत परस्तों, ज़रा सब्र करो
जो संग-ओ-खिश्त तुम्हारे सिर पे बरसते हैं
उन्हें उठाओ और तराश के बना लो
उन्हीं से अपना खुदा
उन्हीं से बना लो अपने दैर के दर-ओ-दीवार भी
इसके बाद भी अगर कोई पत्थर बच जाएं तो
उन्हें संभाल के रखो
क्यूंकी गुनाह के हाथ फिर से बढ़े आएंगे तुम्हारी तरफ
तुम्हारे मंदिरों को उजाड़ने के लिए
तुम्हारे खुदा को मिटाने के लिए
मगर तब तुम्हें डरना नहीं है, घबराना नहीं है
क्यूंकी वो वक्त सब्र का नहीं, पलटवार का होगा
बुतपरस्तों से
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