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बिछड़ने पे उसने ये सौगात दी है

बिछड़ने पे उसने ये सौगात दी है
मुझे तो गमों से भरी रात दी है

ये महँगी मोहब्बत खरीदें तो कैसे
मुझे तो खुदा ने न औकात दी है

हैं सदियों के गम और लम्हों की खुशियां
मुझे ज़िंदगी ने ये खैरात दी है

मुझे दोस्तों से नहीं मिलने देते
मोहब्बत ने यारी को फिर मात दी है

ये किसका मोहब्बत भरा खत है आया
बयाबाँ को किसने ये बरसात दी है

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तो एक बवंडर बन जाना

अपने और परायों को पहचान लिया था