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अपने और परायों को पहचान लिया था

बारिश की हर बूंद को दरिया मान लिया था
उनकी बातों को ही मोहब्बत जान लिया था

दुख में किसने साथ निभाया इससे हमने
अपने और परायों को पहचान लिया था

जैसे ही आज़ाद हुआ पिंजरे से पंछी
अम्बर छूना है उसने ये ठान लिया था

उस महफ़िल में जब भी खाली जाम हुआ तो
हमने उनकी नज़रों का एहसान लिया था

उनकी ज़हरीली तकरीरें सुनकर हमने
किस बस्ती में आग लगेगी, जान लिया था

रफ़्ता रफ़्ता उनसे बातें करके हमने
उल्फत कितनी गहरी है ये जान लिया था

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बिछड़ने पे उसने ये सौगात दी है

बुतपरस्तों से